उर्दू शायरी अपनी गहराई और मधुर प्रवाह के साथ साहित्यिक संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। यह प्रेम, दुख, खुशी या यादों जैसे मानवीय भावनाओं को खूबसूरती से बयां करती है। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम 20 अनमोल उर्दू शायरी प्रस्तुत कर रहे हैं जो दिलों को छू गई हैं और पीढ़ियों को प्रेरित किया है। Here are those forever green Urdu Shayari.
“हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले, बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।”
मिर्ज़ा ग़ालिब
“गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौबहार चले, चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले।”
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
“ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले, ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे, बता तेरी रज़ा क्या है।”
अल्लामा इक़बाल
“रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ, आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ।”
अहमद फ़राज़
“कुर्बतें लाख हसीन हों मगर, लोग जब दिल से उतर जाते हैं, एक छोटे से हक़ीक़त भी, कितने बड़े वहम हो जाते हैं।”
परवीन शाकिर
“अब नहीं कोई बात ख़तरे की, अब सभी को सभी से ख़तरा है।”
जौन एलिया
“दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त, दर्द से भर न आए क्यों, रोएंगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताए क्यों?”
असदुल्ला ख़ान ग़ालिब
“उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो, न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए।”
बशीर बद्र
“कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है, कि ज़िन्दगी तेरी ज़ुल्फ़ों की नर्म छांव में गुज़र पाती तो शादाब हो भी सकती थी।”
साहिर लुधियानवी
“मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर, लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया।”
मजरूह सुल्तानपुरी
“कोई रास्ता नहीं दुआ के सिवा, कोई सुनता नहीं ख़ुदा के सिवा।”
गुलज़ार
“दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है, मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है।”
निदा फ़ाज़ली
“वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी, नफरत भी तुम्हारी थी, हम अपनी वफ़ा का इंसाफ़ किससे मांगते?”
मुनव्वर राना
“साथ चलते हैं मगर फ़ासले नहीं जाते, कभी हम से तुम्हारे ग़म सँभाले नहीं जाते।”
राहत इंदौरी
“तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही, तुझसे मिलकर उदास रहता हूँ।”
“मैंने देखी है उन आँखों की महकती ख़ुशबू, हाथ से छू के इसे रिश्तों का इलज़ाम न दो।”
“आबाद रहे अपनी मोहब्बत का जहाँ तू, बस इस के सिवा हम कोई दुआ नहीं करते।”
“छोड़ आया हूँ कहीं दूर उन गलियों को, अब न धुंधलाएँगे बचपन के वो ख़्वाब कभी।”
“कोई हसरत नहीं बची दिल में, तेरे मिलने की आरज़ू भी नहीं।”
“दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुर्सत के रात दिन, बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किये हुए।”
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